चंपावत उपचुनाव। धामी ने कांग्रेस को शून्यकाल की ओर तो नहीं धकेल दिया?
चंपावत उपचुनाव। चंपावत उपचुनावों में सीएम धामी की ऐतिहासिक जीत और निर्मला गहतोड़ी की ऐतिहासिक हार कांग्रेस के लिए नए सबक दे रही है।
चंपावत उपचुनावों में सीएम पुष्कर सिंह धामी की जीत होगी, इसे लेकर कम ही लोगों को शंका रही होगी। अधिकतर लोगों को इसी बात का इंतजार था कि जीत हार का मार्जिन क्या होगा? अब जब ये पता चल चुका है कि पुष्कर सिंह धामी की जीत और हार का अंतर इतना बड़ा हो चुका है कि वो इतिहास में दर्ज हो चुका है तो लगे हाथ चर्चाएं सीएम को चुनौती दे रहीं कांग्रेस की निर्मला गहतोड़ी की भी होगी।
सवाल ये नहीं है कि निर्मला गहतोड़ी हारीं कितने वोटों से, सवाल ये है कि वो लड़ीं भी या नहीं? या फिर उनके लिए कांग्रेस ने कितना दम लगाया। दरअसल राज्य की राजनीति को समझने वाला ये आसानी से समझ सकता है कि कांग्रेस ने इस चुनाव को बेहद हल्के में लिया।
सभी को ये उम्मीद थी कि धामी ये सीट निकाल लेंगे। खुद धामी और बीजेपी को भी रही होगी लेकिन चुनाव रणनीति में बीजेपी ने कोई समझौता नहीं किया। पूरे जोर और जोश के साथ बीजेपी ने ये उपचुनाव लड़ा। यहां तक कि बीजेपी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी सभा के लिए बुलाया। बीजेपी चाहती तो अपने फायर ब्रांड नेता को न भी बुलाती तो काम चल जाता लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं किया। खुद सीएम पुष्कर सिंह धामी चंपावत में डटे रहे और सघन जनसंपर्क करते रहे। सीएम धामी की चुनावी रणनीति ऐसी थी मानों वो बतौर सीएम उपचुनाव नहीं बल्कि विधायकी का आम चुनाव लड़ रहें हों। सीएम धामी जब चंपावत से दूर हुए तो उनकी पत्नी ने मोर्चा संभाला और चुनावी माहौल बना कर रखा।
चंपावत उपचुनाव। सीएम धामी की ऐतिहासिक जीत, कांग्रेस मानों लड़ी ही नहीं
बीजेपी ने चुनावों के लिए बाकायदा प्रभारी बनाए और उन्हें जिम्मेदारियां सौंपी। बीजेपी को पता था कि ये चुनाव और चुनाव में जीत उनके लिए अहम है। फिर सीएम धामी भी ये समझ रहे थे कि इन चुनावों में जीत जितनी बड़ी होगी, उनका सियासी कद भी उसी तरह ऊंचा होगा।
कांग्रेस की प्रत्यासी निर्मला गहतोड़ी भले ही अपना पूरा सामर्थ्य लगा रहीं हों लेकिन इस बात में दो राय नहीं है कि उन्हें संगठन से वो साथ नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था। पार्टी के बड़े नेताओं की छोड़िए, राज्य के नेताओं के भी दौरे ऐसे लगे मानों वो खानापूर्ति के लिेए पहुंचे हों। उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत भी एक बार ही लोगों से निर्मला गहतोड़ी के लिए वोट मांगते दिखे।
ऐसे में चंपावत उपचुनावों का परिणाम कांग्रेस के लिए एक सबक हो सकता है। प्रत्याशी और संगठन दोनों को कैसे साथ लेकर चलना है और कैसे दोनों के सामंजस्य से सीट निकालनी है ये कांग्रेस को सीखना होगा। उम्मीद है कांग्रेस के रणनीतिकार इसपर काम करेंगे।
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